Sunday, July 18, 2010
बचपन का ज़माना
एक बचपन का ज़माना था,
खुशियों का ख़जाना था………
चाहत चाँद को पाने की,
दिल तितली का दिवाना था………
खबर न थी कभी सुबह कि,
और न ही शाम का ठिकाना था………
थक हार कर आना स्कुल से,
पर खेलने भी तो जाना था………
दादी की कहानी थी,
परियों का फ़साना था………
बारिश मे कागज की कश्ती थी,
हर मौसम सुहाना था………
हर खेल मे साथी थे,
हर रिश्ता निभाना था………
गम की ज़ुबान ना होती थी,
ना ही ज़ख्मो का पैमाना था………
रोने की वजह न थी,
ना हँसने का बहाना था………
अब नही रही वो ज़िदंगी,
जैसा बचपन का ज़माना था………
वो बचपन सुहाना था।
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शानदार! बहुत सुन्दर! दिल को छूने वाली रचना!!!
ReplyDelete======================================
-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
सम्पादक-प्रेसपालिका (जयपुर से प्रकाशित पाक्षिक समाचार-पत्र) एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) (जो दिल्ली से देश के सत्रह राज्यों में संचालित है।
इस संगठन ने आज तक किसी गैर-सदस्य, सरकार या अन्य किसी से एक पैसा भी अनुदान ग्रहण नहीं किया है। इसमें वर्तमान में ४३६६ आजीवन रजिस्टर्ड कार्यकर्ता सेवारत हैं।)। फोन : ०१४१-२२२२२२५ (सायं : ७ से ८) मो. ०९८२८५-०२६६६
धन्यवाद महोदय आपकी यही टिप्पणिया मेरा उत्साह बढाने मे क्रागर सिद्ध होंगी इसलिए कृप्या लिखते रहे।
ReplyDeleteधन्यवाद
मितरां दे अड्डे ते बोहत सजाई जे महफिल मितराँ दी :)
ReplyDeleteआपकी ये रचना वाकई बहुत बढिया लगी..
शुभकामनाऎँ!!
गुड..अच्छी कविता है
ReplyDeletehttp://merajawab.blogspot.com
http://kalamband.blogspot.com
बचपन का जमाना..हमेशा याद रहता है.
ReplyDeleteइस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्लॉग जगत में स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteप्रणाम