कल रात सोया गहरी नींद मे, सपने मे आयी एक
नन्ही कन्या
बुझा चेहरा, भरी आँखे, जैसे पतझड का सूखा पत्ता
जब पूछा मैंने कौन हो तुम
वो बोली एक मुर्झाया फूल
पूछा मैने क्या तुम्हे है कोई गम
उत्तर सुनकर मेरी आँखे हो गई नम।
वो माँ जिसने पाला मुझे नौ मास
क्या नही थी मै उसके लिए खास
सीने से भी ना लगाया
कुछ देर भी ना सहलाया
ले गई सुनसान जंगल मे
फेंक दिया एक खाई मे
मुडकर भी ना देखा एक बार
अब क्या निकालूं अन्याय का सार?
क्या कन्या होना ही है दोष मेरा
या दोषी है ये समाज
क्या ऐसी होती है माँ?
क्यों सभी रहते है इस प्रशन पर मौन?
क्या कभी नहीं मिलेगा मुझे उत्तर
कि आखिर है दोषी कौन?
Saturday, July 31, 2010
Thursday, July 22, 2010
जिसे बचाया उसी के परिवार ने मुझे खाया………
बात सर्दियों की है रविवार का दिन था उस रात काफी औस भी पडी थी तारीख कुछ याद नही आ रही……
सुबह उठ कर बाल कटवाने के लिए जाने का विचार हुआ, तो फिर क्या था, नाई की दुकान कि भीड से बचने के लिये सुबह सुबह सात बजे ही मोटरसाईकिल निकाली और चल दिये। जैसा कि मैने बताया कि औस के दिन थे तो रास्ते भी थोडे गीले और फिसलन भरे थे।
मोटरसाईकिल 20-25 की रफ्तार से चल रही थी सामने अचानक भागते हुये दो कुत्ते आ गये उन्हे बचाने के लिये मैने जैसे ही ब्रेक लगाये तो मोटरसाईकिल फिसल गयी और मै मोटरसाईकिल सहि्त गिर गया। इतनी देर मे वहाँ खडे 5-6 कुत्तो मे से एक कुत्ते ने मेरे बाएँ कंधे पर काट खाया।
उसके बाद क्या था, एक महिने तक के लिये तो तारीख ही मिल गयी इंजेक्शन लगवाने की, मन मे डर भी बैठ गया क्योंकि काफी लोगो ने कहा कि कुत्ते के काटने से इंसान कुत्ते की तरह हो जाता है (कुत्ते की तरह खाना पीना इत्यादि)। और उस दिन के बाद कुत्तो के प्रति मेरा नजरिया भी बदल गया।
वैसे तो हम अक्सर कहते है कि “जैसी करनी वैसी भरनी” लेकिन उस दिन मुझे सही माईने मे “नेकी कर दरिया मे डाल” का अर्थ पता चला।
Sunday, July 18, 2010
बचपन का ज़माना
एक बचपन का ज़माना था,
खुशियों का ख़जाना था………
चाहत चाँद को पाने की,
दिल तितली का दिवाना था………
खबर न थी कभी सुबह कि,
और न ही शाम का ठिकाना था………
थक हार कर आना स्कुल से,
पर खेलने भी तो जाना था………
दादी की कहानी थी,
परियों का फ़साना था………
बारिश मे कागज की कश्ती थी,
हर मौसम सुहाना था………
हर खेल मे साथी थे,
हर रिश्ता निभाना था………
गम की ज़ुबान ना होती थी,
ना ही ज़ख्मो का पैमाना था………
रोने की वजह न थी,
ना हँसने का बहाना था………
अब नही रही वो ज़िदंगी,
जैसा बचपन का ज़माना था………
वो बचपन सुहाना था।
Thursday, July 15, 2010
व्यापारिक मंदी का कद……
डूबते हुए आदमी ने
पुल पर चलते हुए आदमी को
आवाज लगाई "बचाओ बचाओ"
पुल पर चलते आदमी ने नीचे देखा
देखकर सोचो और रस्सी फेंक कर कहा आओ…।
नदी मे डूबता हुआ आदमी
रस्सी नही पकड पा रहा था
रह रह कर चिल्ला रहा था
मै मरना नही चाहता
जिंदगी बडी महंगी है
कल ही तो मेरी एक M N C में नोकरी लगी है
इतना सुनते ही
पुल पर चलते आदमी ने अपनी रस्सी खींच ली
और भागते भागते वो M N C गया
उसने वहां के एच आर को बताया
अभी एक आदमी डूबकर मर गया
और इस तरह आपकी कम्पनी में
एक जगह खाली हो गई
मै बेरोजगार हूँ मुझे ले लो यहाँ
एच आर बोली दोस्त तुमने आने मे देर कर दी
कु्छ देर पहले हमने उस आदमी को रख लिया
जो उसे धक्का दे कर तुमसे पहले
यहाँ पहुँच गया।
पुल पर चलते हुए आदमी को
आवाज लगाई "बचाओ बचाओ"
पुल पर चलते आदमी ने नीचे देखा
देखकर सोचो और रस्सी फेंक कर कहा आओ…।
नदी मे डूबता हुआ आदमी
रस्सी नही पकड पा रहा था
रह रह कर चिल्ला रहा था
मै मरना नही चाहता
जिंदगी बडी महंगी है
कल ही तो मेरी एक M N C में नोकरी लगी है
इतना सुनते ही
पुल पर चलते आदमी ने अपनी रस्सी खींच ली
और भागते भागते वो M N C गया
उसने वहां के एच आर को बताया
अभी एक आदमी डूबकर मर गया
और इस तरह आपकी कम्पनी में
एक जगह खाली हो गई
मै बेरोजगार हूँ मुझे ले लो यहाँ
एच आर बोली दोस्त तुमने आने मे देर कर दी
कु्छ देर पहले हमने उस आदमी को रख लिया
जो उसे धक्का दे कर तुमसे पहले
यहाँ पहुँच गया।
Subscribe to:
Posts (Atom)