बात सर्दियों की है रविवार का दिन था उस रात काफी औस भी पडी थी तारीख कुछ याद नही आ रही……
सुबह उठ कर बाल कटवाने के लिए जाने का विचार हुआ, तो फिर क्या था, नाई की दुकान कि भीड से बचने के लिये सुबह सुबह सात बजे ही मोटरसाईकिल निकाली और चल दिये। जैसा कि मैने बताया कि औस के दिन थे तो रास्ते भी थोडे गीले और फिसलन भरे थे।
मोटरसाईकिल 20-25 की रफ्तार से चल रही थी सामने अचानक भागते हुये दो कुत्ते आ गये उन्हे बचाने के लिये मैने जैसे ही ब्रेक लगाये तो मोटरसाईकिल फिसल गयी और मै मोटरसाईकिल सहि्त गिर गया। इतनी देर मे वहाँ खडे 5-6 कुत्तो मे से एक कुत्ते ने मेरे बाएँ कंधे पर काट खाया।
उसके बाद क्या था, एक महिने तक के लिये तो तारीख ही मिल गयी इंजेक्शन लगवाने की, मन मे डर भी बैठ गया क्योंकि काफी लोगो ने कहा कि कुत्ते के काटने से इंसान कुत्ते की तरह हो जाता है (कुत्ते की तरह खाना पीना इत्यादि)। और उस दिन के बाद कुत्तो के प्रति मेरा नजरिया भी बदल गया।
वैसे तो हम अक्सर कहते है कि “जैसी करनी वैसी भरनी” लेकिन उस दिन मुझे सही माईने मे “नेकी कर दरिया मे डाल” का अर्थ पता चला।
इन्जेक्शन पूरे लगवा लेना...नजरिया जो भी हो. :)
ReplyDeleteअजी भलाई का तो आजकल जमाना ही नहीं रहा. :)
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