योगेश

Saturday, July 31, 2010

क्या आपके पास इसका जवाब है?

कल रात सोया गहरी नींद मे, सपने मे आयी एक
नन्ही कन्या
बुझा चेहरा, भरी आँखे, जैसे पतझड का सूखा पत्ता
जब पूछा मैंने कौन हो तुम
वो बोली एक मुर्झाया फूल
पूछा मैने क्या तुम्हे है कोई गम
उत्तर सुनकर मेरी आँखे हो गई नम।
वो माँ जिसने पाला मुझे नौ मास
क्या नही थी मै उसके लिए खास
सीने से भी ना लगाया
कुछ देर भी ना सहलाया
ले गई सुनसान जंगल मे
फेंक दिया एक खाई मे
मुडकर भी ना देखा एक बार
अब क्या निकालूं अन्याय का सार?
क्या कन्या होना ही है दोष मेरा
या दोषी है ये समाज
क्या ऐसी होती है माँ?
क्यों सभी रहते है इस प्रशन पर मौन?
क्या कभी नहीं मिलेगा मुझे उत्तर
कि आखिर है दोषी कौन?

3 comments:

  1. मार्मिक ....ज्वलंत प्रश्न

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  2. मां नहिं दोषी, दोषी है ये समाज
    देगा तेरे हर आंसू का जवाब्।

    अन्तर्मन को हिला देती कविता।

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  3. अत्यन्त ही मार्मिक रचना है आपकी.
    मन भावुक हो उठा.

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